बहुत बार छात्र-छात्राएं प्रश्न करते हैं कि हम इतिहास क्यों पढ़ते हैं ? अतीत में जो भी हो चुका वो हो चुका, अब परिस्थितियाँ बदल चुकी है उसे दोहराने से क्या लाभ? लेकिन अपने अतीत को यदि हमने भुला दिया होता तो आज दूरदर्शन पर ना रामायण और महाभारत जैसे सीरियल होते, ना भारतीय मुद्रा पर अशोक स्तंभ होता, ना ऐतिहासिक भावनाओं व इमारतों की कोई विशेषता और धार्मिक स्थलों का महत्व ना हम और इस वर्ष नेहरु शताब्दी मना रहे होते और ना पूर्वी व पश्चिमी शिक्षा के समन्वय गुरु रविंद्र नाथ ठाकुर को याद करते समय के साथ सब कुछ समाप्त हो गया होता| महान शिक्षाविद जॉन एमॉस कमेनियस ने 17वीं शताब्दी में सबसे पहले रंगीन तस्वीर वाली पुस्तकों का प्रारंभ किया था ताकि बच्चों की शिक्षा रोचक बन जाए| उनके इस विचार को उनसे ग्रहण का वाद के शिक्षाविदों ने – रूसो, एस्ट्रोलॉजी, डयूबी और भारत में संत विवेकानंद, गुरु रविंद्र नाथ टैगोर, गांधीजी, पंडित नेहरू आदि के सतत् अध्ययन व सतत् प्रयासों के फलस्वरूप शिक्षा का वह रूप बना है, जो आज हम देखते हैं| हाँलाकि समय के साथ-साथ इसमें भी परिवर्तन होंगे| यह सब एक पीढ़ी की या एक युग की उपलब्धि नहीं है, यह सदियों की धरोहर है जो एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित करती जाती है जिसका ज्ञान हम इतिहास नाम के विषय के रूप में करते हैं| वह देश का अतीत है, गौरव है जिस पर हम गर्व करते हैं| यदि हमने अपने इतिहास को भुला दिया होता तो आज ना हम और आप यहां एकत्रित होते, ना ध्वज फहराते और ना उन शहीदों को याद करते जिन्होंने वंदे मातरम कहते-कहते अपने शरीर को स्वतंत्रता के हवन कुंड में होम दिया था| न जाने कितने त्याग, तपस्या, बलिदानों के बाद उन्हें देश का ध्वज मिला और वे इसे हमें सौंप गये| इसका मान सम्मान अब हमारा धर्म है, कर्तव्य है| मात्र एक ध्वज ही तो था, यूनान का परचम ही तो था जिसकी सौगंध देकर यूनान सम्राट सिकंदरने नैतिक रूप से हारती हुई अपनी सेना का मनोबल फिर से बढ़ा दिया था| जो आदर, मान सम्मान उनके मन में अपने ध्वज के लिए था वही हमारे और आपके व हमारे बच्चों के मन में हो, इसीलिए तो यह राष्ट्रीय पर्व मनाए जाते हैं, शहीदों को याद करते है, उनकी मजारों पर मेले लगाए जाते हैं श्रद्धा सुमन चढ़ाए जाते हैं| फिर हमारा यह ध्वज एक साधारण कपड़े पर मात्र तीन रंगों का संगम नहीं है इसका स्वरूप बहुत सुंदर बन गया है| कवियों ने इसके लिए अनेक गीत लिखे हैं, गाये हैं जिन्हें दोहरा कर आज भी मन में एक ओज, जोश उमड़ पड़ता है| याद आती है ऐसी ही कुछ पंक्तियां मुझे आज –